नेशनल अवॉर्ड विनर भूलन द मेज से जुड़े दिलचस्प किस्से:एक्टर्स पर लटक आया सांप,डायरेक्टर का भी टूटा था हाथ; फिल्म देखकर पद्मश्री मदन चौहान बोले-हटके है

नेशनल अवॉर्ड विनिंग छत्तीसगढ़ी फिल्म भूलन द मेज रिलीज हो गई। देशभर के 100 सिनेमाघरों में इस फिल्म को रिलीज किया गया है। हाल ही में रीजनल कैटेगरी में भूलन द मेज फिल्म को नेशनल अवॉर्ड भी मिला है। यह छत्तीसगढ़ की पहली ऐसी फिल्म है जिसे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला हो।

फिल्म के डायरेक्टर मनोज वर्मा हैं। फिल्म के प्रीमियर में संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत भी पहुंचे। छत्तीसगढ़ी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई नामचीन चेहरे भी इस फिल्म की स्क्रीनिंग पर नजर आए। दैनिक भास्कर के लिए इस फिल्म का रिव्यू पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित संगीतकार मदन चौहान ने किया । फिल्म के डायरेक्टर मनोज वर्मा ने इसकी मेकिंग से जुड़े दिलचस्प किस्से भी दैनिक भास्कर से शेयर किए।
यह फिल्म संजीव बख्शी के उपन्यास भूलन कांदा पर आधारित है। इसे गरियाबंद के महुआ भाठा गांव के जंगलों में शूट किया गया है। फिल्म का कुछ हिस्सा रायपुर में भी शूट किया गया है। पिपली लाइव नजर आ चुके ओमकार दास मानिकपुरी, गोलमाल में वसूली भाई का कैरेक्टर कर चुके एक्टर मुकेश तिवारी, कई टीवी सीरीज और फिल्मों में नजर आ चुके राजेंद्र गुप्ता भी इस फिल्म में हैं। बॉलीवुड सिंगर कैलाश खेर ने इस फिल्म के लिए प्लेबैक सिंगिंग की है।
जब शूटिंग के वक्त आ गया सांप
फिल्म के डायरेक्टर मनोज वर्मा ने दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान बताया कि इस फिल्म को शूट करने में हमने कई तरह की मुश्किलों का सामना किया। महुआ भाठा गांव की जिस जगह पर हम शूट कर रहे थे, वहां शेड के नीचे तमाम एक्टर मौजूद थे, तभी वहां एक मोटा सांप लटकने लगा। सभी लोग डर गए थे। शूट के दौरान ही एक हादसे में मेरा हाथ फ्रैक्टर हो गया। गांव के आस-पास अक्सर तेंदुए जैसे जंगली जानवरों के आने की खबर होती थी। उस हाल में एक्टर्स रहकर काम कर रहे थे, मगर हमने इन मुश्किलों को सकारात्मक तौर पर लिया और अपने काम को पूरा किया।
इस फिल्म को बनाने के आईडिया से जुड़े सवाल पर मनोज वर्मा ने बताया कि मैं गोवा के फिल्म फेस्टिवल में गया था, वहां फिल्मों के एक अच्छे जानकार शख्स ने मुझ से पूछ लिया कि क्या छत्तीसगढ़ में भी फिल्में बनती हैं । मनोज ने कहा कि हां हम फिल्में बनाते हैं काफी सालों से। इस पर उस व्यक्ति ने कहा तो क्या वो फिल्में सिर्फ वहीं रह जाती हैं, हमने तो छत्तीसगढ़ी फिल्मों के बारे में नहीं सुना। इस बात को मनोज ने चैलेंज के तौर पर लिया, उन्होंने ठान लिया कि अब तो कुछ ऐसा ही करना है कि देश में फिल्म देखी जाए। उन्होंने भूलन कांदा उपन्यास लिख रहे राइटर संजीव बख्शी से संपर्क किया। अब फिल्म सबके सामने है।
नाम के पीछे का किस्सा है मजेदार
फिल्म के टाइटल में ‘भूलन’ शब्द है जिसका मतलब छत्तीसगढ़ के जंगलों में पाई जाने वाली एक झाड़ी। इसे भूलन कांदा कहते हैं। इसके पीछे की एक दिलचस्प कहानी है, ऐसा माना जाता है की इस कांदा (झाड़ी) पर पैर पड़ने से इंसान सब कुछ भूलने लगता है। रास्ता भूल जाता है, भटकने लगता है और जब कोई दूसरा इंसान उस इंसान को छू न ले तब तक उसे होश नहीं आता। इसलिए झाड़ी को भूलन नाम दिया गया। फिल्म में भूलन का कॉन्सेप्ट न्याय व्यवस्था से जोड़कर दिखाया गया है।
पद्मश्री मदन चौहान ने किया फिल्म रिव्यू
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों सम्मानित पद्मश्री संगीतकार मदन चौहान ने इस फिल्म का रिव्यू दैनिक भास्कर के लिए किया। मदन चौहान कई छत्तीसगढ़ी फिल्मों में भी संगीत दे चुके हैं। लंबे वक्त से छत्तीसगढ़ के सिनेमा को समझने वाले मदन चौहान ने बताया कि इस फिल्म में गांव के प्रति छत्तीसगढ़िया लोगों के जुड़ाव को बेहद खूबसूरती से फिल्माया गया है। फिल्म के हर कलाकार ने अपने किरदार में जान डालने का काम किया है। कहानी आखिर तक दर्शकों को जोड़े रखने में बेहद कामयाब रही है। नंदा जाही का… पड़की जैसे लोक गीतों को बहुत ही अच्छे ढंग से फिल्म में पिरोया गया है, जो सुनने में मजा देते हैं । बहुत हटके फिल्म हैं ,देखनी चाहिए।
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Author: newtraffictail

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