एक कहानी में राज्यसभा टिकटों की अंतरकथा:छत्तीसगढ़ से उम्मीदवार रंजीत रंजन बोलीं-मुखिया चाहता है कि आबाद बच्चे से दूसरो को भी मदद मिल जाए

कांग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवारों को लेकर स्थानीय और बाहरी की बहस जारी है। इस बीच छत्तीसगढ़ से कांग्रेस की राज्यसभा उम्मीदवार रंजीत रंजन ने साफ किया है कि मजबूत राज्यों में कमजोर प्रदेशों के नेताओं को टिकट इसलिए दिए गए हैं ताकि वे अपने यहां संगठन को मजबूत कर सकें। रंजीत रंजन ने दैनिक भास्कर से राज्यसभा चुनाव, छत्तीसगढ़ के सवाल और बिहार की राजनीति पर अपनी बातचीत की।

रंजीत रंजन ने कहा, संसद इस देश के लोकतंत्र की सबसे बड़ी पंचायत है। कई बार होता है कि वहां विपक्ष का मुंह बंद करवाने की कोशिश की जाती है। लोकसभा और राज्यसभा सबसे बड़ी पंचायत है जहां पूरे देश के मुद्दे उठाए जाते हैं। उसमें छत्तीसगढ़ भी आता है, बिहार भी आता है। एक सवाल उठ रहा है कि छत्तीसगढ़ से नहीं, बिहार से हैं। अपनी बात स्पष्ट करने के लिए रंजीत रंजन ने एक कहानी सुनाई। कहा-एक मां के बहुत से बच्चे होते हैं। एक का घर आबाद है। दूसरों की हालत थोड़ी खराब है। ऐसे में जो परिवार का मुखिया होता है वह कहता है भाई थोड़ा सा उनको भी दो ताकि वे भी खुद को मजबूत कर सकें। मुझे लगता है कि इस सोच से उन्होंने (केंद्रीय नेतृत्व ने) दसों जगह टिकट दिया है। यह पार्टी और देश दोनों के हित में है।

इस उम्मीदवारी का बिहार की राजनीति पर क्या असर होगा?

इस सवाल पर रंजीत रंजन ने कहा, ऐसा पहली बार हुआ है कि बिहार के किसी व्यक्ति को अदर स्टेट से राज्यसभा जाने का सम्मान दिया गया है। यह गर्व की बात है। बिहार में इसका भी बहुत अच्छा मैसेज गया है। मैं फिर कहूंगी कि सदन पूरे देश की होती है। मैडम (सोनिया गांधी) और राहुल जी ने बहुत सोच-समझ कर यह निर्णय लिया है। इसका असर आने वाले दिनों में इस दिखेगा। हमारा टारगेट है कि बिहार में मजबूती के साथ पार्टी को खड़ा किया जाए।

क्या अगले चुनावों में राजद से फिर गठबंधन की संभावना बनेगी?

रंजीत रंजन ने दो टूक कहा कि अभी इसकी संभावना नहीं बन रही है। हमारे कमजोर होने की एक वजह यह भी सामने आई है कि कई प्रदेशों में हम क्षेत्रीय दलों पर निर्भर हो गए। इसकी वजह से संगठन बिखर गया। अभी कोशिश है कि संगठन को फिर से एकजुट और ताकतवर बनाने की है। चुनाव के वक्त अगर यह महसूस होगा कि संगठन अभी इतना मजबूत नहीं है तो गठबंधन की संभावना पर बात हो सकती है। उसमें भी सम्मान महत्वपूर्ण होगा।

यहां आशंकाएं हैं कि दूसरे राज्य का नेता चुनाव जीतने के बाद पलटकर नहीं आता?

इस सवाल पर कांग्रेस नेता रंजीत रंजन ने कहा, बिहार में मैं 2004 में चुनाव जीतकर आई। 2009 में हार गई। 2009 से 2014 तक हर 10-15 दिन में क्षेत्र में पहुंचती रही। 2014 में फिर चुनाव जीतकर आए। 2019 में फिर हार गए। अभी यहां आने से चार दिन पहले मैं बिहार के अपने क्षेत्र में थी। मुझे नहीं लगता कि इस उम्मीद पर किसी को उदासीनता होगी। मेरे लिए जैसे बिहार है, वैसे छत्तीसगढ़। एक और डिफरेंस होता है। कुछ लोग पद के लिए आते हैं। एक होते हैं जमीन से जिन्हें आदत पड़ गई होती है कि पंचायत में जा रहे हैं, गांवों में जा रहे हैं। यहां आकर मुझे असहजपन नहीं लगा। यहां मुख्यमंत्री जी से मिलकर ऐसा लगा ही नहीं कि वे बहुत ऊंची पोस्ट पर हैं। बिल्कुल ही सहज और जमीन जुड़े व्यक्ति हैं। अगर सब लोग ऐसे मिलते हैं तो कोई असहजता मुझे नहीं लगती।

सदन में छत्तीसगढ़ के मुद्दे कैसे उठाएंगी?

रंजीत रंजन ने कहा, ऐसा नहीं है कि मैं यहां की सारी बात जान रही हूं, लेकिन विश्वास दिला सकती हूं कि यहां के हर जरूरी मुद्दे पर बात करुंगी। यहां आऊंगी, मुख्यमंत्री जी से चर्चा करुंगी। संगठन के लोगों से समझुंगी। होमवर्क होगा और आप देखेंगे कि राज्यसभा में देश भर के मुद्दों के साथ-साथ छत्तीसगढ़ के मुद्दे भी मजबूती से उठाए जाएंगे।

कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा जा रही हैं रंजीत रंजन

मध्य प्रदेश के रीवा में जन्मी रंजीत रंजन लॉन टेनिस की खिलाड़ी रही हैं। बिहार के बाहुबली सांसद पप्पू यादव से उनका विवाह हुआ। उसके तुरंत बाद से राजनीति में सक्रिय हुईं। बिहार के सुपौल से विधानसभा चुनाव से शुरुआत की। जीत नहीं मिली। 2004 में रंजीत रंजन, लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर सहरसा से पहली बार लोकसभा पहुंचीं। परिसीमन के बाद सहरसा सीट के स्थान पर सुपौल क्षेत्र बना। इस सीट से रंजीत ने कांग्रेस से चुनाव लड़ा और जदयू उम्मीदवार से हार गईं। 2014 में उन्होंने मोदी लहर के बावजूद सुपौल सीट पर जीत दर्ज की। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। अभी वे कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव हैं। जम्मू-कश्मीर में संगठन चुनाव की पीआरओ भी हैं। अब वे कांग्रेस के टिकट पर छत्तीसगढ़ से राज्यसभा जा रही हैं।

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Author: newtraffictail

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