मुंबई: भारतीय नौसेना अपनी 5वीं डीजल-इलेक्ट्रिक स्कॉर्पीन पनडुब्बी को अगले सप्ताह कमीशन करेगी, जिसका नाम आईएनएस वागीर है. इस श्रेणी की छठी और आखिरी पनडुब्बी इस साल के अंत तक इंडियन नेवी में कमीशन हो जाएगी. भारत ने स्कॉर्पीन श्रेणी की 6 पनडुब्बियों के लिए 2005 में फ्रांसीसी कंपनियों के साथ 23,000 करोड़ रुपये से अधिक की प्रोजेक्ट-75 परियोजना के लिए डील साइन की थी. नौसेना प्रमुख एडमिरल आर हरि कुमार 23 जनवरी को मुंबई में नौसेना डॉकयार्ड में आईएनएस वागीर की कमीशनिंग समारोह के मुख्य अतिथि होंगे. मैसर्स नेवल ग्रुप, फ्रांस के सहयोग से मझगांव डॉक्स (MDL) में चल रहे इस ‘प्रोजेक्ट-75’ में भारी लागत और समय की वृद्धि हुई है.
लेकिन अब बड़ी चिंता ‘प्रोजेक्ट-75-इंडिया’ के तहत 42,000 करोड़ रुपये से अधिक की 6 और उन्नत डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों के निर्माण के लिए ‘रणनीतिक साझेदारी’ मॉडल के तहत फॉलो-ऑन कार्यक्रम में जारी भारी देरी है. हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी नौसेना लगातार अपनी ताकत बढ़ा रही है, इसे भारतीय नौसेना की अंडरवाटर कॉम्बैट के लिए जरूरी हथियार प्रणाली में कमी के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. एमडीएल या निजी एल एंड टी शिपयार्ड (MLD, L&T Shipyard) के सहयोग से 6 नई स्कॉर्पीन पनडुब्बियों का निर्माण करने वाली विदेशी कंपनियों को इस साल अगस्त तक अपनी कमर्शियल और टेक्निकल बिडिंग जमा करने के लिए एक और विस्तार दिया गया है.
प्रोजेक्ट-75I पनडुब्बियों के लिए ‘एक्सेप्टेंस फॉर नेसेसिटी’ पहली बार नवंबर 2007 में दी गई थी. इस श्रेणी की पनडुब्बियां जमीन पर हमला करने वाली क्रूज मिसाइलों के साथ-साथ डीप अंडरवाटर अधिक समय तक बने रहने के लिए वायु-स्वतंत्र प्रणोदन (Air-Independent Propulsion), दोनों तकनीकों से लैस होंगी. अनुबंध पर हस्ताक्षर होने के बाद ऐसी पहली पनडुब्बी को तैयार होने में लगभग एक दशक का समय लगेगा. चीन, जिसके पास 50 डीजल-इलेक्ट्रिक और 10 परमाणु पनडुब्बियां हैं, इस बीच पाकिस्तान को एआईपी के साथ 8 युआन-श्रेणी की डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों की आपूर्ति करने की प्रक्रिया में है. नौसेना ने गुरुवार को कहा कि आईएनएस वागीर (सैंड शार्क) के शामिल होने से भारत के समुद्री हितों को आगे बढ़ाने की उसकी क्षमता बढ़ेगी.
एक नौसेना अधिकारी ने कहा, ‘आईएनएस वागीर एंटी-सरफेस वारफेयर, एंटी-सबमरीन वारफेयर, खुफिया जानकारी एकत्र करने, माइंस बिछाने और निगरानी मिशन सहित विभिन्न मिशनों को अंजाम देने में सक्षम है. आईएनएस कलवरी, आईएनएस खंडेरी, आईएनएस करंज और आईएनएस वेला के रूप में प्रोजेक्ट-75 की 4 स्कॉर्पीन सबमरीन भारतीय नौसेना में पहले ही कमीशन हो चुकी हैं, जो लॉन्ग रेंज गाइडेड टॉरपीडो और ट्यूब-लॉन्च एंटी-शिप मिसाइलों के साथ-साथ उन्नत सोनार और सेंसर सूट से लैस हैं. प्रोजेक्ट-75 की आखिरी स्कॉर्पीन पनडुब्बी आईएनएस वाग्शीर की डिलीवरी 2023 के अंत तक हो जाएगी.’ इनके अलावा, नौसेना अंडरवाटर बेड़े में सिर्फ 6 पुरानी रूसी किलो-क्लास और 4 जर्मन एचडीडब्ल्यू पनडुब्बियों के साथ ऑपरेट कर रही है. परमाणु मोर्चे पर, भारत के पास वर्तमान में केवल एक ऑपरेशनल SSBN (परमाणु-चालित बैलिस्टिक मिसाइलों से लैस पनडुब्बियों के लिए नौसेना की भाषा) INS अरिहंत मौजूद है, जबकि दूसरा INS अरिघाट जल्द ही बेड़े में शामिल होने के लिए तैयार हो रहा है. नौसेना को चीन-पाकिस्तान की सांठगांठ के खतरे से निपटने के लिए कम से कम 18 पारंपरिक पनडुब्बियों, 4 SSBNs और 6 परमाणु-संचालित हमलावर पनडुब्बियों (SSNs) की आवश्यकता है.