‘कर्नाटक के कब्जे वाले क्षेत्र को केन्द्र शासित प्रदेश घोषित करे केंद्र’, सीमा विवाद के बीच उद्धव ठाकरे की मांग

महाराष्ट्र और कर्नाटक… दोनों ही जगह बीजेपी सत्ता में है और दोनों ही राज्य अब आमने-सामने आ गए हैं. कारण है दोनों राज्यों के बीच पांच दशकों से चला आ रहा सीमा विवाद. महाराष्ट्र और कर्नाटक का सीमा विवाद फिलहाल थमता नजर नहीं आ रहा है. सीमा विवाद को लेकर महाराष्ट्र और कर्नाटक के नेताओं में जुबानी जंग चल रही है. इसी बीच महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे ने कहा कि वह कर्नाटक के साथ विवादास्पद सीमा क्षेत्र में रहने वालों के साथ एकजुटता व्यक्त करते हुए मंगलवार को राज्य विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश करेंगे.

दूसरी तरफ महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे ने मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे का घेराव करना भी शुरू कर दिया है.उद्धव ने सोमवार को विधान परिषद में सवाल करते हुए कहा कि सीएम शिंदे कर्नाटक सीमा विवाद पर चुप क्यों हैं? कर्नाटक के सीएम प्रस्ताव पास कर रहे हैं, लेकिन महाराष्ट्र के सीएम इस मुद्दे पर चुप हैं, ऐसा क्यों? उद्धव ने कहा कि कर्नाटक के सीएम कह रहे हैं कि वो एक इंच भी ज़मीन नहीं देंगे. लेकिन उन्हें ये अच्छे से समझ लेना होगा कि हमें उनकी ज़मीन नहीं चाहिए, बल्कि हमें हमारा बेलगाम चाहिए. जो कि मराठी बहुल इलाका है. ऐसे में जब मामला सुप्रीम कोर्ट में है तो उसके बाद भी कर्नाटक सरकार द्वारा बेलगाम में रहने वाले मराठियों को तकलीफ क्यों दी जा रही है? उन्होंने विधान परिषद में मांग उठाते हुए कहा कि जब तक कर्नाटक महाराष्ट्र सीमा विवाद सुप्रीम कोर्ट में लम्बित है, तब तक बेलगाम को केंद्र शासित प्रदेश किया जाए.

सदन में बोलने नहीं दे रहा पक्ष: विपक्ष का आरोप इससे पहले 9 दिसंबर को लोकसभा में एकनाथ शिंदे गुट की शिवसेना से सांसद धैर्यशील माने ने भी इस मुद्दे को उठाया था. उन्होंने कहा था कि कर्नाटक के मराठी भाषाई इलाकों में विरोध हो रहा है, आंदोलन हो रहे है.और वहां ‘आतंक का माहौल’ है. उन्होंने आरोप लगाया था कि  कर्नाटक के मुख्यमंत्री ऐसे बयान दे रहे हैं, जिससे लोग डर रहे हैं और कानून व्यवस्था की समस्या पैद हो गई है. वहीं महाराष्ट्र के विपक्ष का कहना है कि सरकार विपक्ष को सदन में बोलने नहीं दे रही है. साथ ही महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा विवाद पर शिंदे सरकार की भूमिका भी स्पष्ट नहीं है.

गृह मंत्री अमित शाह की मामले पर नजर वहीं इस पूरे मामले पर गृह मंत्री अमित शाह की नजर भी बनी हुई है. हाल ही में उन्होंने कहा था कि संविधान के मुताबिक, कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा विवाद समाप्त हो गया है. जब तक सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आ जाता, दोनों राज्य क्लेम नहीं करेंगे. उन्होंने कहा कि किसी भी विमर्श के लिए दोनों राज्यों के तीन-तीन मंत्री बैठेंगे और उसपर चर्चा करेंगे. इसके अलावा गृह मंत्री ने कहा था कि दोनों राज्यों के लोगों को परेशानी न झेलनी पड़े इसके लिए सीनियर आईपीएस अधिकारी निगरानी करेंगे. शाह ने आगे कहा कि फेक ट्विटर ने विवाद को तूल देने में बड़ी भूमिका निभाई है, ऐसे में आरोपियों पर उस बाबत एफआईआर दर्ज होगी. शाह ने कहा कि दोनों राज्यों के हित में अब इस विवाद को राजनीतिक मुद्दा नहीं बनाना चाहिए. बल्कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार किया जाना चाहिए.  ऐसे में विपक्ष भी इसे तूल नहीं दे.

18 साल पहले सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था मामला बता दें कि 18 साल पहले 2004 में महाराष्ट्र सरकार इस सीमा विवाद को सुप्रीम कोर्ट लेकर गई थी. महाराष्ट्र सरकार ने 814 गांवों उसे सौंपने की मांग की थी. 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि इस मसले को आपसी बातचीत से हल किया जाना चाहिए. साथ ही ये भी सुझाव दिया था कि भाषाई आधार पर जोर नहीं देना चाहिए, क्योंकि इससे परेशानी और बढ़ सकती है. ऐसे में इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट  में 30 नवंबर को सुनवाई हुई थी.

कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा विवाद क्या है?  आखिर कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा है क्या? अगर आपके मन में यह सवाल आ रहा है तो हम आपको बताते हैं कि क्यों दो राज्य के बीच जंग छिड़ी हुई है. दरअसल, आजादी से पहले महाराष्ट्र को बंबई रियासत के नाम से जाना जाता था. आज के समय के कर्नाटक के विजयपुरा, बेलगावी, धारवाड़ और

उत्तर कन्नड़ पहले बंबई रियासत का हिस्सा थे. आजादी के बाद जब राज्यों के पुनर्गठन का काम चल रहा था, तब बेलगावी नगर पालिका ने मांग की थी कि उसे प्रस्ताववित महाराष्ट्र में शामिल किया जाए, क्योंकि यहां मराठी भाषी ज्यादा हैं. इसके बाद 1956 में जब भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का काम चल रहा था, तब महाराष्ट्र के कुछ नेताओं ने बेलगावी (पहले बेलगाम), निप्पणी, कारावार, खानापुर और नंदगाड को महाराष्ट्र का हिस्सा बनाने की मांग की.  जब मांग जोर पकड़ने लगी तो केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मेहर चंद महाजन की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया. इस आयोग ने 1967 में अपनी रिपोर्ट सौंपी. आयोग ने निप्पणी, खानापुर और नांदगाड सहित 262 गांव महाराष्ट्र को देने का सुझाव दिया. इस पर महाराष्ट्र ने आपत्ति जताई, क्योंकि वो बेलगावी सहित 814 गांवों की मांग कर रहा था.  महाराष्ट्र का कहना है कि कर्नाटक के हिस्से में शामिल उन गांवों को उसमें मिलाया जाए, क्योंकि वहां मराठी बोलने वालों की आबादी ज्यादा है. लेकिन कर्नाटक भाषाई आधार पर राज्यों के गठन और 1967 की महाजन आयोग की रिपोर्ट को ही मानता है.

बेलगावी को अपना अटूट हिस्सा मानता है कर्नाटक कर्नाटक, बेलगावी को अपना अटूट हिस्सा बताता है. वहां सुवर्ण विधान सौध का गठन भी किया गया है, जहां हर साल विधानसभा सत्र होता है. विधानसभा का का विंटर सेशन बेलगावी में 19 से 30 दिसंबर तक होगा. इतना ही नहीं, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने हाल ही में महाराष्ट्र के अक्कलकोट और सोलापुर में कन्नड़ भाषी इलाकों के विलय की मांग की थी. साथ भी ये भी दावा किया था कि सांगली जिले के जाट तालुका के कुछ गांव कर्नाटक में शामिल होना चाहते हैं.

 

 

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Author: newtraffictail

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