बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को गृह विभाग के तहत ट्रांसजेंडरों के लिए पद निर्मित करने के मामले में फटकारा है। चीफ जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने कहा कि सरकार नींद में है और इस मुद्दे पर पिछड़ी हुई है। उन्होंने ट्रांसजेंडरों के लिए दो पद न रखे जाने पर नाराजगी जताई और जस्टिस दीपांकर ने पूरी भर्ती प्रक्रिया रोक देने की चेतावनी दी। गुरुवार को बेंच सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में राज्य प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के आवेदन पत्र में ट्रांसजेंडरों के लिए प्रावधान करने के निर्देश को चुनौती दी गई है।
यह है पूरा मामला
पुलिस कांस्टेबल की भर्ती के लिए विज्ञापन जारी होने के बाद ट्रांसजेंडर आर्य पुजारी ने ऑनलाइन फॉर्म करने की कोशिश की, लेकिन वे फॉर्म भरने में सक्षम नहीं थे, क्योंकि उसमें तीसरे जेंडर का ऑप्शन नहीं था। जिसके कारण पुजारी ऑनलाइन फॉर्म नहीं भर सके। मामने में उन्होंने महाराष्ट्र एडमिनिस्ट्रेशन ट्रिब्यूनल (MAT) में शिकायत दर्ज कराई थी।
ट्रिब्यूनल ने राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि ट्रांसजेंडर फॉर्म भरने में सक्षम हैं। उन्हें भर्ती होने का मौका मिल सके। इसने राज्य सरकार को ट्रांसजेंडरों के लिए फिजिकल स्टैंडर्ड और टेस्ट के एक क्राइटेरिया तय करने का भी निर्देश दिया।
राज्य सरकार ने ट्रांसजेंडरों की भर्ती के लिए कोई पॉलिसी नहीं बनाई
राज्य सरकार ने MAT के आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसमें कहा गया कि उनकी भर्ती प्रक्रिया पहले से ही चल रही है और वे इस समय ट्रांसजेंडरों की भर्ती नहीं कर सकते हैं। सरकार ने अपनी याचिका में कहा कि ट्रिब्यूनल के निर्देश को लागू करना बेहद मुश्किल था, क्योंकि उसने अभी तक ट्रांसजेंडरों की भर्ती के लिए स्पेशल प्रोविजन के संबंध में कोई पॉलिसी नहीं बनाई है।
बता दें कि 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक पदों पर भर्ती के दौरान ट्रांसजेंडरों की भर्ती के लिए कहा था। कई राज्यों ने इस नियम को लागू कर दिया है जबकि महाराष्ट्र ने अभी तक शीर्ष अदालत के आदेश को लागू नहीं किया है।