नितीन फलटणकर. शाम के 6 बजे थे। जब हम गांव पहुंचे ही थे कि एक सायरन बजना शरू हुआ। रास्तों पर खेलते बच्चे घरों की और दोड़ते दिखे। दूसरी ओर उनके माता-पिता भी घरों से निकल कर रास्तों पर उन्हें ढूंढकर घर ले जाने के लिए आए।
हम इस बात को लेकर सोच में थे। क्योंकि ऐसे हालात तो दूसरे विश्वयुद्ध में ब्रिटेन में दिखते थे। तब जर्मन प्लेन दिखते ही लोगों में हड़कंप मच जाता था। ऐसा दृश्य महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले के जकेकुरवाड़ी में देखने को मिला। जब पूछताछ की तो पर पता चला कि ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि कोरोना के बाद बच्चों को मोबाइल और टीवी से दूर करना एक चुनौती थी।
बच्चों के भविष्य के लिए तय किया गया
330 मकानों वाले जकेकुरवाड़ी की आबादी करीब 2200 है। इनमें करीब 500 बच्चे हैं। इन बच्चों के भविष्य के लिए यह तय किया गया कि दो घंटे नो मोबाइल, नो टीवी अभियान चलाया जाए।
रोजाना शाम 6 बजे से 8 तक करते हैं फॉलो
दो साल पहले हुए पंचायत चुनाव में 35 साल के युवा अमर सूर्यवंशी को सरपंच चुना गया था। MA, बीएड कर चुके सूर्यवंशी ने गांववालों के साथ मिलकर बच्चों की पढ़ाई की और ध्यान दिया। इसके लिए निर्णय लिया गया कि गांव में रोजाना शाम 6 बजे से रात 8 बजे तक मोबाइल और टीवी बंद रखा जाएगा।
गुटका बेचने पर 5 हजार, खानेवाले पर 500 का जुर्माना
गांव में पहले बच्चे गुटका खाते नजर आते। अब इस पर बैन लगा दिया गया है। गांव में गुटका बेचने पर 5 हजार रुपए और खाने वाले पर 500 रुपए जुर्माना लगने का फैसला किया गया है। लोग अब गुटका और धूम्रपान बंद कर चुके हैं। गांव के ही दत्तात्रय सूर्यवंशी ने बताया कि बच्चे अब IAS और IPS बनने की बात करते हैं और मन लगाकर पढ़ाई करते हैं।