मोबाइल बजते ही बाघ ने पंजा मारा, निकाल लिया मांस:ड्रम में घुसकर ढक्कन नहीं लगाता तो चली जाती जान

मुरैना में बाघ का VIDEO बनाने पहुंचे युवक की जान जाते-जाते बची। बाघ ने मुरैना के स्थानीय पत्रकार दिनेशचन्द्र जैन पर कैसे हमला किया और कैसे उन्होंने अपनी जान बचाई, जानते हैं उनकी जुबानी-मुरैना से 50 KM दूर रूनीपुर गांव की पाटौर में एक बाघ छिपा बैठा था। मुझे जैसे ही उसकी जानकारी मिली तो मैं उसका VIDEO बनाने पहुंच गया। 70 फीट की दूरी से मैं VIDEO बनाने ही वाला था कि उसी समय मेरे साथ वाले युवक के मोबाइल की घंटी बज गई। मोबाइल की घंटी बजते ही बाघ आक्रमण करने आ गया। जैसे ही बाघ ने हमला किया, उसी समय हमने दोनों हाथों से अपना सिर नीचे कर लिया तो उसने पीठ पर पंजा मार दिया। उसके नाखूनों से मेरा मांस निकल आया। तुरंत मैं, पास में जमीन पर पड़े ड्रम में घुस गया और उसका ढक्कन बंद कर लिया। बाघ ड्रम पर पंजे मारता रहा। इस दौरान मेरे साथ वाला युवक वहां से भाग गया। इसके कुछ देर बाद ही ग्रामीणों ने शोर मचाया तो बाघ वापस पाटौर में जाकर छिप गया।
ग्रामीण चिल्लाए बाघ ने मार डाला
दिनेशचन्द्र जैन बताते हैं कि जैसे ही बाघ ने उन पर हमला किया तो आस-पास खड़ी भीड़ चिल्लाने लगी कि बाघ ने मार डाला। हमने भी सोच लिया था कि आज मौत आ गई। आज तो मरना निश्चित है। समय पर दिमाग काम कर गया। जैसे ही पीठ पर बाघ ने हमला किया तो पंजे पर लगे घाव की चिंता किए बगैर नजर पास में पड़े ड्रम पर चली गई। तुरंत ड्रम के अन्दर घुस गया और उसका अंदर से ढक्कन लगा लिया। बाघ गुस्से में ड्रम पर अपने पंजे मारता रहा। उसी समय ग्रामीणों ने हल्ला मचाना शुरू किया तो उनका शोर सुनकर वह डर गया और वह वापस उसी पाटौर में जाकर छिप कर बैठ गया जहां वह पहले बैठा हुआ था।

चार क्विंटल से कम का नहीं है बाघ
दिनेशचन्द्र जैन बताते हैं कि जैसे ही उसने उनकी पीठ पर पंजा मारा तो उसके वजन का उन्हें अहसास हो गया। बाघ का वजन चार क्विंटल से कम का नहीं है। जैसे ही उसने पंजा मारा तो उसके वजन से वे जमीन गिर पड़े। अगर पास में खड़े ग्रामीण व पुलिस हो हल्ला नहीं मचाती तो बाघ उन्हें उठने का भी मौका नहीं देता। जैसे ही बाघ का ध्यान अन्य पास खड़े ग्रामीणों पर गया तो वे तुरंत मौका पाकर उठे और ड्रम में जा छिपे।
पुलिस स्वयं कर रही थी बचने का प्रयास
उन्होंने बताया कि जिस समय बाघ के छिपे होने की सूचना पुलिस को मिली। पुलिस वाले दूर खड़े थे और बाघ को पकड़ने के वजाय वे अपने आपको बचाने का प्रयास करते नजर आए। वन विभाग की जो टीम आई थी वह बाघ को पकड़ने में सक्षम नहीं थी, लिहाजा सभी लोग बाघ की केवल निगरानी कर रहे थे। पुलिस वालों ने महिलाओं व बच्चों को उनके घरों में ही बंद कर दिया था जिससे कि कोई भी धोखे से बाहर न निकल आए। बाघ किसी भी क्षण, किसी पर भी हमला कर सकता था। हम स्वयं बाघ से लगभग 70 फीट दूरी पर खड़े थे, इसके बावजूद बाघ ने हम पर हमला बोल दिया।
गांव वालों के दिलो-दिमाग में बसा बाघ का डर
दिनेशचन्द्र जैन बोले कि बाघ का डर ग्रामीणों के दिलो-दिमाग में इतना बैठ गया है कि वे घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं। गांव में खेत-खलिहान में जाने में उन्हें डर लग रहा है। गांव वालों को खेतों में पानी देने जाना है लेकिन वे बाघ के डर की वजह से नहीं जा रहे हैं। बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं और महिलाएं चिंता में हैं।
जिला चिकित्सालय में नहीं मिले इंजेक्शन
दिनेशचन्द्र जैन ने बताया कि घायल होने के बाद वे एम्बूलेंस से मुरैना जिला चिकित्सालय पहुंचे जहां डॉक्टरों की टीम ने उन्हें देखा। वहां उनका प्राथमिक उपचार किया गया लेकिन घाव को सुखाने के इंजेक्शन उनके पास नहीं थे। इसलिए उन्हें ग्वालियर जिला चिकित्सालय को रैफर कर दिया। एम्बूलेंस से वे ग्वालियर पहुंचे जहां जयारोग्य चिकित्सालय में उनके घाव के आस-पास इंजेक्शन लगाए गए।
रात में नहीं आती नींद, दिल में समाया है डर
उस वाकये को याद करते हुए दिनेशचन्द्र जैन बताते हैं कि जब भी वे उस घटना को याद करते हैं तो उनके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। रात-रात भर नींद नहीं आती है। सपने में भी बाघ दिखाई देता है। अगर नींद आ जाए तो आधी रात के बाद नींद खुल जाती है। शरीर पसीना-पसीना हो जाता है। ऐसा लगता है कि बाघ आस-पास ही कहीं छिपा बैठा है। उस घटना को याद करते हुए वे बताते हैं कि उस दिन उनकी मौत निश्चित थी। अगर ईश्वर की कृपा नहीं होती और वे ड्रम मे छिपने का आइडिया उन्हें नहीं आता तो आज वे शायद ही जिंता होते।

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Author: newtraffictail

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