सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश में धार्मिक परिवर्तन के आरोप में दर्ज कई एफआईआर रद्द करते हुए कहा कि कानून का उपयोग निर्दोष लोगों को परेशान करने के लिए नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि एफआईआर में कानूनी खामियां, प्रक्रियात्मक चूक और विश्वसनीय सामग्री की कमी है, और इस तरह के मुकदमों को जारी रखना न्याय का उपहास होगा।
पीठ ने कहा, “कानून का उपयोग निर्दोष लोगों को परेशान करने के लिए नहीं किया जा सकता”
पीठ ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के पास संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत शक्ति है कि वह मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ राहत प्रदान करे। पीठ ने कहा कि संविधान ने इस तरह की जिम्मेदारी उच्चतम न्यायालय को सौंपी है कि वह मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ राहत प्रदान करे।
कोर्ट ने कहा कि उत्तर प्रदेश कानून विशेष विधान है
पीठ ने कहा कि उत्तर प्रदेश कानून विशेष विधान है, जिसमें कुछ विशेष प्रक्रियात्मक मानक निर्धारित किए गए हैं। कोर्ट ने कहा कि विधायिका की मंशा को समझने के लिए कानून के प्रावधानों को पढ़ना चाहिए।
एक एफआईआर में 35 नामित और 20 अज्ञात लोगों के खिलाफ आरोप
एक एफआईआर में आरोप लगाया गया था कि एक कार्यक्रम में 90 हिंदुओं को ईसाई धर्म में परिवर्तित किया गया था। आरोप था कि हिंदुओं को अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती और धोखाधड़ी के माध्यम से धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया गया था।
कोर्ट ने एफआईआर रद्द की
कोर्ट ने कहा कि एफआईआर में कानूनी खामियां और विश्वसनीय सामग्री की कमी है, और इस तरह के मुकदमों को जारी रखना न्याय का उपहास होगा। कोर्ट ने एफआईआर रद्द कर दी और कहा कि कानून का उपयोग निर्दोष लोगों को परेशान करने के लिए नहीं किया जा सकता।






